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होम लोन एक सिक्योर्ड लोन है जिसमें बैंक या वित्तीय संस्था उस प्रॉपर्टी को गिरवी रखते हैं जिसे आप खरीदने, बनवाने या रेनोवेट करने के लिए लोन ले रहे हैं। गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी की कीमत का कितना हिस्सा आपको होम लोन के रूप में मिलेगा इसे समझने के लिए LTV रेश्यो को समझना ज़रूरी है।
लोन-टू-वैल्यू रेश्यो (LTV) दर्शाता है कि आपको प्रॉपर्टी के मूल्य का कितना हिस्सा लोन के रूप में मिलेगा। इसे हमेशा प्रतिशत में दिखाया जाता है।
उदाहरण से समझें:
मान लीजिए आप ₹1 करोड़ की प्रॉपर्टी खरीदना चाहते हैं और बैंक 65% LTV दे रहा है, तो आपको ₹65 लाख का लोन मिलेगा। बाकी ₹35 लाख आपको खुद डाउनपेमेंट के रूप में देना होगा।
नोट: सिर्फ प्रॉपर्टी की वैल्यू के आधार पर ही लोन राशि तय नहीं होती। बल्कि बैंक और लोन संस्थान लोन राशि तय करते समय आपकी भुगतान क्षमता और प्रॉपर्टी की स्थिति, प्रॉपर्टी कितने साल पुरानी है, उसके आस-पास के इंफ्रास्ट्रक्चर आदि जैसे कारकों पर भी विचार करते हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अलग-अलग लोन अमाउंट के अनुसार अधिकतम LTV रेश्यो तय किया है जो कि इस प्रकार है:
| लोन राशि | LTV रेश्यो |
| ₹30 लाख तक | 90% (संपत्ति मूल्य का) |
| ₹30 लाख से ₹75 लाख | 80% (संपत्ति मूल्य का) |
| ₹75 लाख से अधिक | 75% (संपत्ति मूल्य का) |
RBI की नियामक सीमाओं के अलावा, अंतिम LTV रेश्यो बैंक/लोन संस्थान द्वारा आवेदक की क्रेडिट रिस्क असेसमेंट पर भी निर्भर करती है। बैंक और HFC कम क्रेडिट जोखिम वाले आवेदकों को उच्च LTV और अधिक क्रेडिट जोखिम वाले आवेदकों को कम LTV रेश्यो प्रदान करते हैं। क्योंकि LTV रेश्यो कम होने पर आवेदक को अधिक डाउनपेमेंट करना होता है जो बैंक के क्रेडिट रिस्क को कम करता है जिससे आपकी होम लोन की योग्यता बढ़ती है।
बैंक और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां अक्सर कम LTV रेश्यो वाले आवेदकों को कम ब्याज दर पर लोन ऑफर करती हैं, क्योंकि ऐसे आवेदकों को लोन देने में लेंडर्स को कम जोखिम होता है। कम ब्याज दरों पर लोन मिलने से न सिर्फ आपकी EMI कम होगी बल्कि कुल ब्याज लागत में भी बचत कर सकेंगे। इसलिए जिन आवेदकों के पास डाउन पेमेंट के लिए अतिरिक्त रकम है, उन्हें कम LTV रेश्यो चुनना चाहिए। लेकिन ऐसा करते समय अपने इमरजेंसी फंड, निवेश और मत्वपूर्ण वित्तीय लक्ष्यों के लिए जमा राशि को डाउनपेमेंट के लिए उपयोग न करें। इनका उपयोग करने पर आवेदकों को भविष्य में ज़रूरत पड़ने पर अधिक ब्याज दरों पर लोन लेने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।