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बिज़नेस बढ़ाने, बच्चों की हायर एजुकेशन या किसी अन्य व्यक्तिगत ज़रूरत को पूरा करने के लिए पैसों की ज़रूरत कभी भी किसी को भी पड़ सकती है। ऐसे में आपके पास कोई रेसिडेंशियल (घर), इंडस्ट्रियल या कमर्शियल प्रॉपर्टी है तो आप इसे गिरवी रखकर किसी बैंक/NBFCs से लोन अगेंस्ट प्रॉपर्टी (LAP) ले सकते हैं। इस लोन के मिलने की संभावना बढ़ाने के लिए ‘क्या करना चाहिए और क्या नहीं’ जानने के लिए लेख आगे पढ़ें-
लोन लेने से पहले अपनी मासिक इनकम और खर्चो का आकलन करें। फिर ज़रूरत अनुसार लोन लें, ताकि बिना किसी परेशानी के लोन की मासिक किस्त चुकाई जा सके। ध्यान रखें कि आमतौर पर बैंक/NBFCs उन्हीं को लोन देना पसंद करते हैं जो अपनी मंथली इनकम का 50-60% वर्तमान और नए लोन की EMI भरने में खर्च करते हैं, इसे EMI/NMI रेश्यो कहते हैं। यानी अगर आपकी मासिक आय ₹1 लाख है, तो आपकी कुल EMI ₹50,000 – ₹60,000 से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए।
EMI/NMI रेश्यो ज़्यादा होने पर लोन मिलने की संभावना कम हो सकती है। ऐसे में लोन राशि घटाकर या फिर लोन अवधि बढ़ाकर लोन पाने की योग्यता को बेहतर किया जा सकता है।
2. लोन अवधि समझदारी से चुनें
लोन की कुल ब्याज लागत में लोन अवधि का अहम योगदान होता है। लोन अवधि छोटी होने से ईएमआई ज़्यादा देना पड़ता है, लेकिन इससे कुल ब्याज लागत में बचत होती है और लोन भी जल्दी चुकता हो जाता है। इसके उल्ट, लोन की अवधि लंबी होने से EMI कम होती है लेकिन कुल ब्याज लागत ज़्यादा भरनाnee पड़ताee है।
उदाहरण के लिए- अगर आप 10% प्रतिवर्ष के हिसाब से ₹50 लाख का लोन 10 साल के लिए लेते हैं तो आपकी EMI लगभग ₹66,000 होगी और इसकी कुल ब्याज लागत लगभग ₹29 लाख होगा। वहीं, अगर आप समान ब्याज दर पर समान लोन राशि 15 साल के लिए लेते हैं तो आपकी EMI ₹53,000 होगी और कुल ब्याज लागत लगभग ₹47 लाख होगी। अगर आप अधिक EMI भर सकते हैं तो छोटी अवधि चुनें और ब्याज लागत में बचत करें।
| लोन राशि | ₹50 लाख | ₹50 लाख |
| ब्याज दरें (प्रति वर्ष) | 10% | 10% |
| लोन अवधि | 10 साल | 15 साल |
| मासिक किस्त | ₹66,000 | ₹53,000 |
| कुल ब्याज लागत | ₹29 लाख | ₹47 लाख |
| ब्याज में कुल बचत | ₹18 लाख | |
एक ही आवेदक को उसकी क्रेडिट प्रोफाइल (इनकम, जॉब प्रोफाइल, प्रॉपर्टी आदि) के आधार पर विभिन्न बैंक व एनबीएफसी से अलग-अलग ब्याज दरों पर लोन मिल सकता है। ऐसा आवेदक की प्रोफाइल और लेंडर की अपनी आंतरिक नीति की वजह से होता है। इसलिए किसी एक बैंक व एनबीएफसी से लोन लेने से पहले विभिन्न लेंडर्स द्वारा दी जाने वाली ब्याज दरों की तुलना अवश्य करें।
ब्याज दरों के साथ प्रोसेसिंग फीस व प्रीपमेंट जैसे चार्जेस की तुलना करना न भूलें। ये लोन की कुल बढ़ा सकते हैं। विभिन्न लोन ऑफर्स की तुलना करने के लिए पैसाबाज़ार जैसे ऑनलाइन फाइनेंशियल मार्केटप्लेस का इस्तेमाल करें। यहां एक ही जगह पर अपनी योग्यता के अनुसार विभिन्न लोन ऑफर चेक करके अपने लिए उपयुक्त लोन विकल्प चुनें।

अपने इमरजेंसी फंड में ज़रूरी खर्चों के अलावा कम से कम 6 माह की EMI जितनी राशि ज़रूर रखें। ताकि अचानक नौकरी छूटने या अप्रत्याशित खर्चों के समय EMI भरने में कोई रुकावट न आए। वरना एक बार की भी EMI देरी/छूट से पेनल्टी तो लगती ही है, साथ में क्रेडिट स्कोर भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। ये इमरजेंसी फंड ऐसी जगह रखें जहां से ज़रूरत पड़ने पर पैसे तुरंत निकाले जा सकें, जैसे- हाई-यील्ड सेविंग अकाउंट या लिक्विड फंड आदि।
5. लोन डिस्बर्सल समय चेक करें
लोन अगेंस्ट प्रॉपर्टी (LAP) की प्रोसेसिंग में लगने वाला समय हर बैंक या NBFCs में अलग-अलग हो सकता है। लीगल जांच, प्रॉपर्टी वैल्यूएशन और डॉक्यूमेंट वैरिफिकेशन जैसी प्रक्रियाओं के कारण, इसकी मंज़ूरी अन्य लोन की तुलना में आमतौर पर अधिक समय लेती है। ऐसे में अगर आपको लोन जल्दी चाहिए, तो आवेदन करने से पहले ही लेंडर से सैंक्शन और डिस्बर्सल में लगने वाले समय की जानकारी लें और उसी के अनुसार लेंडर चुनें।
ये भी पढ़ें- प्रॉपर्टी के बदले लोन (LAP) लेना चाहते हैं? पहले इन गलतफहमियों को कर लें दूर
लोन आवेदन करने से पहले अपना क्रेडिट स्कोर ज़रूर चेक करें। यह न सिर्फ लोन आवेदन की मंजूरी में अहम भूमिका निभाता है बल्कि ब्याज दरों को भी प्रभावित करता है। आमतौर पर बैंक व एनबीएफसी हाई क्रेडिट स्कोर वाले आवेदकों को कम ब्याज दर पर लोन ऑफर करते हैं साथ ही लोन की शर्तें भी तुलनात्मक रूप से बेहतर हो सकती है। इसलिए लोन आवेदन से पहले अपना क्रेडिट स्कोर चेक करें और ज़रूरत अनुसार उसमें सुधार करें।
2. EMI भुगतान में देरी न करें
EMI का समय पर भुगतान आपके वित्तीय अनुशासन और क्रेडिट प्रोफाइल दोनों के लिए बेहद ज़रूरी है। एक भी EMI छूटने पर न केवल जुर्माना और अतिरिक्त ब्याज देना पड़ता है, बल्कि यह आपके क्रेडिट स्कोर को भी नुकसान पहुंचाता है। बार-बार देरी से EMI का भुगतान करने पर बैंक आपको जोखिम वाला उधारकर्ता मान सकता है, जिससे भविष्य में किसी नए लोन या क्रेडिट कार्ड की मंज़ूरी मिलने में मुश्किल हो सकती है। इसके अलावा डिफॉल्टर (NPA) के मामले में प्रॉपर्टी भी हाथ से जा सकती है।
EMI भुगतान में देरी न हो इसके लिए ऑटो-डेबिट या ECS सुविधा का उपयोग करें। हर महीने ड्यू डेट से पहले अपने बैंक अकाउंट में पर्याप्त राशि रखें। अगर किसी महीने वित्तीय दिक्कत हो तो बैंक को पहले ही सूचित करें। इन सब के अलावा समय-समय पर अपना क्रेडिट रिपोर्ट चेक करते और किसी तरह की गलत एंट्री दिखने पर ब्यूरो को रिपोर्ट करें।
जितनी बार लोन आवेदन करते हैं उतनी बार हार्ड इन्क्वायरी होती है। हर हार्ड इन्क्वायरी क्रेडिट रिपोर्ट में भी दर्ज होता है। कम समय में कई हार्ड इन्क्वायरी होने से क्रेडिट स्कोर कुछ अंकों से गिर भी सकता है। इसलिए बेहतर होगा कि ऑनलाइन फाइनेंशियल मार्केटप्लेस जैसे प्लेटफॉर्म्स पर विभिन्न लोन ऑफर्स की तुलना करने के बाद लोन ही उपयुक्त लेंडर के पास लोन आवेदन करें।