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ELSS या ULIP ? लगभग हर व्यक्ति जो बाज़ार में निवेश करना चाहता है उसे ये सवाल ज़रूर परेशान करता है कि वो ELSS में निवेश करे या ULIP में? इस लेख का उद्देश्य निवेशकों को ULIP और ELSS की जानकारी और तुलनात्मक जानकारी देकर सही निर्णय लेने में निवेशकों की मदद करना है।
| ULIP | ELSS | |
| कॉन्सेप्ट | एक बीमा कम निवेश विकल्प | सम्पूर्ण निवेश विकल्प |
| लक्ष्य | जीवन बीमा कवरेज के साथ टैक्स छूट व निवेश लाभ देना | मैनेज फण्ड होने के नाते विभिन्न निवेश से लाभ देना। |
| लॉक-इन अवधि | 5 वर्ष। इसका प्रीमियम भुगतान रोका जा सकता है, लेकिन लॉक-इन अवधि समाप्त होने से पहले ULIP को बंद नहीं किया जा सकता है। | 3-वर्षीय लॉक-इन अवधि |
| टैक्स | इसमें किये हुए निवेश पर आयकर धारा 80 c के तहत टैक्स मुक्त होता है और इस पर मिला रिटर्न/ लाभ आयकर धारा 10 (10D) के तहत टैक्स मुक्त होता है। | लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTGS) के टैक्स नियमों के मुताबिक, एक वर्ष में एक लाख रु. तक का निवेश टैक्स मुक्त है। |
| स्विच | इक्विटी, डेब्ट, हाइब्रिड, बैलेंस्ड, या मनी मार्केट फंड आदि जैसे फंडों में से किसी एक से दूसरे फण्ड में जा सकते हैं। इसकी संख्या और स्विच शुल्क कंपनियों में अलग अगल हो सकते हैं। | इसमें स्विच नहीं कर सकते हैं। क्योंकि पूरा पैसा इक्विटी और इक्विटी से संबंधित फंड में लगाया जाता है। लॉक-इन समाप्ति के बाद सिस्टेमेटिक ट्रांसफर योजना शुरू की जा सकती है। |
| शुल्क | 10 वर्ष और उससे अधिक की पॉलिसी के लिए 2.25% पर और अन्य के लिए अधिकतम 3% | फंड मैनेजमेंट शुल्क उस फंड के आधार पर लागू होता है जो लगभग 2% है और यह योजना के NAV में एडजस्ट हो जाता है। डायरेक्ट प्लान के मामले में कम शुल्क लागू। |
| रेगुलेटर | IRDA | SEBI |
| लॉयल्टी | पॉलिसी की शर्तों के आधार पर पॉलिसी में बने रहना आवश्यक है। | प्लान में बने रहना आवश्यक नहीं है। |
| पारदर्शिता | फंड की पारदर्शिता में कमी होती है, ये नहीं पता होता कि पैसा कहाँ निवेश किया गया है। | फंड द्वारा रखे गए विशिष्ट शेयरों के स्टॉक और क्वांटम के बारे में जानकारी उपलब्ध होती है। |
| जोखिम | ज़्यादा जोखिम, कैपिटल और रिटर्न/ लाभ की गारंटी नहीं है लेकिन लाइफ कवरेज की गारंटी है। | ज़्यादा जोखिम, रिटर्न/ लाभ बाज़ारों और फंड मैनेजर के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। |
मूल रूप में दोनों निवेश विकल्प एक जैसे हैं, दोनों ही शेयर बाज़ार में निवेश करते हैं और दोनों ही आयकर धारा 80 C के तहत टैक्स बचत भी प्रदान करते हैं। लेकिन इसके अलावा कुछ अन्य विशेषताएँ हैं जो दोनों में अंतर पैदा करती हैं।
यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान जिन्हें ULIP के नाम से जाना जाता है, विभिन्न बीमा कंपनियों द्वारा बेचा जाने वाला बीमा-निवेश है। ULIP की USP यह है कि यह बीमा कवरेज के साथ-साथ शेयर बाज़ार में निवेश का लाभ भी प्रदान करता है।
मूल रूप से, भुगतान की गई प्रीमियम की राशि को इस तरह से आवंटित किया जाता है कि इसका एक हिस्सा निवेश के उद्देश्य से अलग-अलग फंड में जाता है और भुगतान किए गए प्रीमियम का कुछ हिस्सा ग्राहक के इंश्योरेंस कवर के लिए रखा जाता है।ULIP ग्राहक की मृत्यु पर बीमा लाभ प्रदान करते हैं, यानी यदि ग्राहक की पॉलिसी की अवधि के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो बीमा राशि या फंड राशि, जो भी अधिक होगी वह राशि नॉमिनी को मिल जाती है।
उदाहरण के लिए, श्री मेहता XY कंपनी से ULIP पॉलिसी लेते हैं और 10 वर्ष की पॉलिसी अवधि के लिए 50,000 रुपये का वार्षिक प्रीमियम देते हैं। कंपनी ने उन्हें वार्षिक प्रीमियम का 10 गुना बीमा कवरेज देने की पेशकश की है, जिसका अर्थ है कि उनकी बीमा राशि 5,00,000 रुपये है।
उदाहरण 1: श्री मेहता के साथ 3 प्रीमियम के भुगतान के बाद एक दुर्घटना हो जाती है।
इस मामले में, हालांकि, श्री मेहता ने सिर्फ 3 प्रीमियम का भुगतान किया, जो कि 1.5 लाख रुपये तक का है और क्लेम की तारीख को फंड का मूल्य 1.7 लाख रुपये है, श्री मेहता की मृत्यु के मामले में उनके नॉमिनी को 5,00,000 रुपये मिलेंगे। गौरतलब है कि पॉलिसी-धारक की मृत्यु होने की स्थिति में भुगतान नॉमिनी को किया जाता है।
उदाहरण 2: श्री मेहता का 9 प्रीमियम भरने के बाद दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
इस मामले में, क्लेम की तारीख तक भुगतान किया गया प्रीमियम 4,50,000 रुपये है, फंड वैल्यू 5,95,000 रुपये है। हालांकि, इन्श्योरेंस 5 लाख रूपये के लिए था, मृतक के नॉमिनी को इंश्योरेंस राशि या फंड वैल्यू दोनों में से जो अधिक है वह मिलता है। तो ऐसी स्तिथि में, फंड वैल्यू अधिक है तो नॉमिनी को फंड वैल्यू मिलती है जो 5,95,000 रुपये है।
उदाहरण 3: सेरेंडर या मेच्योरिटी की स्थिति में क्या होता है?
पॉलिसी को सेरेंडर या उसे मेच्योरिटी पर वापस लेने पर मौजूदा बाज़ार मूल्य के अनुसार फंड वैल्यू का भुगतान किया जाता है। जैसा कि यह एक बाज़ार से जुड़ा हुआ उत्पाद है जो शेयर में निवेश करता है, बता दें, कि ULIP इन्वेस्टमेंट के साथ रिटर्न/ लाभ की गारंटी नहीं है।
हालांकि, टैक्स छूट प्राप्त करने के लिए इंश्योरेंस कवरेज कम से कम वार्षिक प्रीमियम का 10 गुना होना चाहिए, अन्यथा टैक्स लाभ आयकर धारा 80C के तहत केवल 10% पर होता है और आयकर धारा 10 (10D) के तहत लाभ नहीं लागू होता है।
जब ULIP को पहली बार 1971 में लॉन्च किया गया था, तो निवेशकों को उम्मीद थी कि यह अच्छे रिटर्न/ लाभ देगा लेकिन कई छिपे हुए शुल्क के कारण ऐसा नहीं हो पाया। ULIP की समस्या विभिन्न प्रकार के शुल्क खर्चों की है जिसमें पॉलिसी आवंटन शुल्क, पॉलिसी एडमिन चार्ज, स्विचिंग चार्ज, रिडेम्पशन चार्ज, फंड मैनेजमेंट चार्ज, मृत्यु दर शुल्क आदि शामिल हैं।
हालांकि, वर्ष 2010 में एक नया बिल पारित हुआ और परिणामस्वरूप IRDA द्वारा किए गए संशोधन के बाद इन शुल्कों को अधिकतम 2.25% पर सीमित किया गया है।पॉलिसी एडमिनिस्ट्रेशन चार्ज के साथ आवंटन शुल्क इससे अधिक नहीं हो सकता है। फंड मैनेजमेंट शुल्क 1.35% से अधिक नहीं हो सकता।
इसके बावजूद ULIP रिटर्न/ लाभ का एक बङा हिस्सा इन शुल्कों में चला जाता है। इसके अलावा, ULIP द्वारा प्रदान की जाने वाली इन्वेस्टमेंट-बीमा स्ट्रेटजी की वजह से निवेशक को लाभ की तुलना करने मे कठिनाई होती है।
इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ELSS) एक प्रकार का म्यूचुअल फंड है जो शेयर बाज़ार में निवेश की सुविधा देता है। साथ ही साथ आयकर धारा 80C के तहत 1.5 लाख रुपये तक का निवेश पर टैक्स मुक्त भी होते हैं। जिससे निवेशक को टैक्स लाभ भी मिलते हैं।
यह भी पढ़ें:म्यूचुअल फंड टैक्सेशन के बारे में जाने
निवेशक को ELSS में इन्वेस्ट करते समय या तो ग्रोथ विकल्प या डिविडेंट विकल्प चुनना होता है।
ग्रोथ विकल्प: ग्रोथ विकल्प के अंतर्गत जो भी ब्याज, बोनस, लाभ और डिविडेंट मिलता है, वह स्वयं योजना में इनवेस्ट हो जाता है। जो कि NAV में शामिल होता है, इसमें कोई भी अंतरिम भुगतान नहीं लगता है।
3 वर्ष की लॉक-इन अवधि खत्म होने के बाद ही निवेशक को फंड रिडीम करने पर ही रिटर्न मिलता है। एक ही योजना के ग्रोथ विकल्प व डिविडेंट विकल्प के NAV में काफी अंतर होता है। ग्रोथ विकल्प का NAV डिविडेंट विकल्प की तुलना में बहुत अधिक होता है क्योंकि इसमें कोई भुगतान नहीं किया जाता है और यह खुद ही योजना में इनवेस्ट हो जाता है जिससे आने वाले समय में अधिक रिटर्न की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
डिविडेंट विकल्प: किसी योजना में डिविडेंट विकल्प यह दर्शाता है कि निवेशक को डिविडेंट के रूप में भुगतान मिलता है। भुगतान की दर और समय हालांकि पूर्व निर्धारित नहीं होती है और यह पूरी तरह से फंड के प्रदर्शन पर निर्भर करता है।
ELSS डिविडेंट विकल्प के तहत, दो उप विकल्प हैं: डिविडेंट भुगतान और डिविडेंट री-इन्वेस्टमेंट। डिविडेंट पे-आउट में, इन्वेस्टर को नकद भुगतान के रूप में डिविडेंट दिया जाता है। लेकिन डिविडेंट री-इन्वेस्टमेंट में, कोई नकद भुगतान न कर के डिविडेंट को फिर से इनवेस्ट कर दिया जाता है और अधिक यूनिट को निवेशक खाते में जमा कर दिया जाता है।
ELSS उन निवेशकों के लिए अच्छा है जो अच्छी ग्रोथ के साथ शॉर्ट टर्म इनवेस्टमेंट की तलाश कर रहे हैं। इसमें लाभ शेयर बाज़ार से मिलता है जो कि अन्य निवेश विकल्पों की तुलना में बेहतर है। लेकिन निवेशकों को यह याद रखना चाहिए कि ज़्यादा समय के लिए निवेश करने वाला निवेशक ही इक्विटी इन्वेस्टमेंट का अधिकतम लाभ उठा सकते हैं। हालांकि, आप SIP भी चुन सकते हैं और कम इनवेस्टमेंट, कम जोखिम के साथ अधिकतम लाभ उठा सकते हैं।
ELSS निवेशक फंड को आसानी से अपने फंड के प्रदर्शन को भी ट्रैक कर सकता है। यह उन युवाओं लिए सबसे सही विकल्प है जो आजीविका के लिए इन्वेस्टमेंट इनकम पर निर्भर नहीं हैं। इस प्रकार इन्वेस्टर लंबे समय तक इनवेस्ट फंड को बनाए रख सकता है जो लंबे समय बाद लाभ के रूप में एक बड़ी राशि देता है।
दूसरी ओर, ULIP का एकमात्र लाभ है कि इसमें बीमा कवरेज और बाज़ार रिटर्न दोनों का लाभ मिलता है। यह एक अच्छा विकल्प है जो मार्केट रिटर्न के माध्यम से इनकम के साथ-साथ पॉलिसी धारक के की मृत्यु पर कवर भी देता है।
हालांकि, एक प्रोडक्ट के रूप में ULIP के शुल्क के कारण इसका रिटर्न/ लाभ कम हो जाता है। सर्वश्रेष्ठ ELSS फंडों के 5-वर्षीय में 13-17% तक रिटर्न मिलता है, वहीं ULIP 5-वर्ष के आधार पर केवल 8-10% रिटर्न प्रदान कर सकता है। इसके अलावा, ULIP की लॉक-इन अवधि ELSS की तुलना में बहुत अधिक होती है।